Monday, December 29, 2014

न हो शोहरत तो गुमनामी का भी खतरा नहीं होता,
बहुत मशहूर होना भी बहुत अच्छा नहीं होता ।

फसादों, हादसों, जंगों में ही हम एक होते हैं,
कोई आफ़त न आए तो कोई अपना नहीं होता ।



 समझने लगता है दुनिया को बच्चा पैदा होते ही,
अब इस दुनिया में बच्चा बन के वो पैदा नहीं होता ।

अंधेरा घर में, बाहर रोशनी, ऐसा भी होता है,
किसी का दिल तो होता है बुरा, चेहरा नहीं होता ।




चलो आज करते हैं,
शेर-ओ- शायरी का मुक़ाबला....
तुम ले आओ मीर,ग़ालिब, फ़राज़
की किताबें ,
मैं सिर्फ अपने बेवफा यार
की कहानी सुनाऊंगा...!
💲




वो जिसको पढ़ता नहीं, मगर बोलते सब हैं,
जनाबे-मीर भी कैसी ज़बान छोड़ गए ।

सजा के फ़ुर्सतें अपनी काग़ज़ पर,
अजीब लोग थे , इक दास्तान छोड़ गए ।




 न बामो-दर न कोई सायबान छोड़ गए,
मेरे बुजुर्ग खुला आसमान छोड़ गए ।

तमाम शहर के बच्चे यतीम भी तो नहीं ,
खिलौने वाले जो अपनी दुकान छोड़ गए ।


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