Sunday, December 28, 2014

दुनियादारी से रूबरू हुआ तो पता चला, जिस्म में ज़मीर का होना इतना ज़रूरी नही, जितना जेब में रूपया होना ज़रूरी है.




 आँसुओं और शराबों में गुजारी है हयात
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं




 तारे है अनेक पर आज है चाँद की बारी
फूल है कई पर वो तो गुलाब है हमारी
उनकी एक मुस्कान पे कुर्बान है ज़िंदगी सारी
और उनकी पलको की छाओ में जन्नत है हमारी…




 रातें गुमनाम होती है,
दिन किसिके नाम होता है,
हम ज़िंदगी कुछ इस तरह जीते है,
की हर लम्हा सिर्फ़ दोस्तों के ही नाम होता है.




: ऐ रात तू मेरे अकेले पन पर इस कदर मत हस
वर्ना तू उस दिस बहुत पछताएगी .
जब मेरी मोहबह्त मेरी बहो में होगी .



 ये जो हम हिज्र में दीवारो-दर को देखते हैं
कभी सबा को कभी नामाबर को देखते हैं
वो आये घर में हमारे खुदा की कुदरत है
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं 

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