Monday, December 29, 2014

आदत बना ली मैंने, खुद को तकलीफ देने की,

ताकि जब अपना कोई तकलीफ दे, तो तकलीफ ना हो...




 लत ऐसी लगी है कि तेरा नशा मुझसे छोड़ा नहीं जाता,

हकीम भी कह रहा है कि इक बूँद इश्क भी अब जानलेवा है....!!




 किसे सुनाएँ अपने गम के चन्द पन्नो के किस्से......
यहाँ तो हर शक्स भरी किताब लिए बैठा है.......




तेरी आवाज आज भी मेरे कानों में रक्स करती है,
वो तेरा हर बार का कहना की "तुम सिर्फ मेरे हो"




 हमसे बिछड़ के वहाँ से एक पानी की बूँद ना निकली
तमाम उम्र जिन आँखों को हम झील कहते रहे...




 कल तुझसे बिछड़ने का फैसला कर लिया था,

आज अपने ही दिल को रिश्वत दे रहा हूँ..




ख़त में मेरे ही ख़त के टुकड़े थे.....
और,
मैं समझा के मेरे ख़त का जवाब आया है....




दर्द मेरे दिल का कोई भी ना जाने ना कोई मेरी वफ़ा पहचाने,

जिसका सहारा बना था कभी मै वो ही लगे दिल को दुखाने...




जब भी करीब से गुजरती है तेरी यादें,

तू मुझसे दूर बहुत दूर नज़र आती है....!!




 "हम गलत थे चलो इतना तो मान लेते है..

क्या वो शख्स ठीक था जो बदल गया करीब आने के बाद"...!!




 !! मंजिले तो खुशनसीबो को नसीब हो गई,
हम तो दीवाने है तेरे इंतज़ार के सफ़र में ही रहेंगे...!!




क्या नाम दूं अपनी मोहब्बत को ,

     कि ये तेरा सिवा किसी और से होती ही नहीं..!




 || आज तुम हर साँस के साथ याद आ रहे हो....

अब तुम्हारी याद रोक दु या अपनी सांस...||

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