Wednesday, December 31, 2014

घर से बाहर वो नक़ाब मे निकली
सारी गली उनकी फिराक मे निकली
इनकार करते थे वो हमारी मोहब्बत से
ओर हमारी ही तस्वीर उनकी किताब से निकली..




नज़र को नज़र की खबर ना लगे,
कोई अच्छा भी इस कदर ना लगे,
आपको देखा है बस उस नज़र से,
जिस नज़र से आपको नज़र ना लगे.




: कैसे भूलेगी वो मेरी बरसों की चाहत को,
दरिया अगर सूख भी जाये तो रेत से
नमी नहीं जाती...




Mujhe bhi ab neend ki talab nahin rahi,

Ab raaton ko jagna accha lagta hain,

Mujhe nhi malum wo meri kismt me h ki nhi

Magar use khuda se mangna achha lgta hai




 कड़वा इसलिए भी लगता हूँ,
क्योंकि
सच बोलता हूँ।

आप कहो तो मीठा हो जाऊं,
फिर न कहना बड़ा झूठ बोलते हो!




ज़िंदगी की हकीक़त को बस
इतना जाना हैं,
रोना हैं अकेले ही और हँसने में ज़माना है..!!

No comments:

Post a Comment