Monday, December 29, 2014

आग से आग कब और कहां बुझती है
बुझेगी आग , मिज़ाज़ शबनम रख्खो अपना ।

इसी से पड़ोसी को खाना हो जाएगा नसीब
थोडा़ -सा खाली शीकम रख्खो अपना ।

पहले ज़ेहन पाक-साफ कर लो
फिर कागज़ के ऊपर कलम रख्खो अपना ।




 ये सियासत का करिश्मा है हमारे दौर का.....

तख़्त पर बैठा हुआ विश्र्वास गद्दारी के साथ ।


मौत से भी कहीं ज्यादा मरा है उम्र भर....

जान फ़िर भी जाएगी इक रोज बीमारी के साथ ।




दिल के तराजू में पहले ग़म रख्खो अपना
फिर शिकवे की जानीब कदम रख्खो अपना ।

विरान करके रख देगी ये ज़िंदगानी
रुझान दुनिया की जानीब कम रख्खो अपना ।

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