Tuesday, December 2, 2014

 एक चेहरा था, दो आँखे थीं, हम भूल पुरानी कर बैठे,

इक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे...!

हम तो अल्हड़-अलबेले थे, खुद जैसे निपट अकेले थे,

मन नहीं रमा तो नहीं रमा, जग में कितने ही मेले थे,

पर जिस दिन प्यास बंधी तट पर,पनघट इस घट में अटक गया,

एक इंगित ने ऐसा मोड़ा, जीवन का रथ पथ भटक गया,

जिस “पागलपन” को करने में, ज्ञानी-ध्यानी घबराते है,

वो पागलपन जी कर खुद को, हम ज्ञानी-ध्यानी कर बैठे..



‬: Naraaz hona aapse galti kehlayegi,

Aap hue naraaz toh yeh saase tham jayengi,

Aap haste rahe uhi zindagi bhar,

Aapki hasi se hamari zindagi sawar jayengi..

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