Friday, December 26, 2014

 गुजर जाएगा ये दौर भी ज़रा इत्मीनान तो रख,

जब ख़ुशी ही ना ठहरी तो ग़म की क्या औकात है...



: यूँ तो कीमत भी,
अदा कर सकते थे मगर...
चाहने वाले थे तेरे,
खरीददार नहीं थे हम...
मेरे चेहरे पर सिर्फ़,
तुम्हे पढ़ा लोगों ने...
आखिर किताब थे,
अखबार नहीं थे हम...





अपनी कमजोरियां उन्ही लोगों को बताइये जो हर हाल में आपके साथ मजबूती से खड़े होना जानते हैं

क्यूँकि रिश्तों में विश्वास और मोबाईल में नेटवर्क ना हो तो लोग Game खेलना शुरू कर देते हैं !!




 दरिया ने झरने से पूछा.....
तुझे समुंदर नही बनना क्या ?
झरने ने बडे प्यार से कहा...
बड़ा होकर खारा होने से अच्छा है कि छोटा रहकर मीठा ही रहूँ....||
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