: कोई मुद्दा नहीं छोड़ा, कोई मसला नहीं छोड़ा,
जो गुजरा वो हर दर्द रोया जियादा कोई थोड़ा।
मेरा मेहबूब फिर भी क्यों मुझसे अजनबी रहा,
उसके दीदार तक तस्बीर का दामन नहीं छोड़ा।
हरेक अश्क अपनी आँख से कागज पे बिछाया,
तस्बीर की कशिश ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।
कोई गर पूछता है सबब तो मैं कहता हूँ फक्र से,
वो अंजाना सही मैंने उसकी यादों को नहीं छोड़ा।
कड़े-टुकड़ेदिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जितना जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली .
रिमझिम रिमझिम बूंदों में, जहर भी है और अमृत भी ..
आँखें हंस दी,दिल रोया, ये अच्छी बरसात मिली..
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी..
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली..
जो गुजरा वो हर दर्द रोया जियादा कोई थोड़ा।
मेरा मेहबूब फिर भी क्यों मुझसे अजनबी रहा,
उसके दीदार तक तस्बीर का दामन नहीं छोड़ा।
हरेक अश्क अपनी आँख से कागज पे बिछाया,
तस्बीर की कशिश ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।
कोई गर पूछता है सबब तो मैं कहता हूँ फक्र से,
वो अंजाना सही मैंने उसकी यादों को नहीं छोड़ा।
कड़े-टुकड़ेदिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जितना जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली .
रिमझिम रिमझिम बूंदों में, जहर भी है और अमृत भी ..
आँखें हंस दी,दिल रोया, ये अच्छी बरसात मिली..
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी..
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली..
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