Monday, December 8, 2014

 मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं जाती
यह कालिख उम्र भर रहती है साबुन से नहीं जाती



 कर कोशिश बेकार हाथ को रोजगारों में फँसाने की
रोज़ घरौंदे उजड रहे हैं कोशिश उन्हें बसाने की
इस प्रतियोगी युग ने छीनी सबके चेहरे की मुस्कान
फिर भी अपनी कोशिश रहती हँसने और हँसाने की



: हर कोई तुमसा ख़ास नहीं होता,
जो ख़ास होता है वोह कभी पास नहीं होता,
यकीन ना आये तो चाँद को ही देखो,
जिसके दूर होते हुए भी दूरी का एहसास नहीं होता |



 जिन्दगी में सब किस्मतका खेला है,
जिसमे मुस्केलीयो का जमेला है,
खुशियोंमें दोस्तोका लगता मेला है,
पर गम में हर आदमी अकेला है…

: यह धरा कितनी बड़ी है एक तुम क्या एक मैं क्या ?
दृष्टि का विस्तार है यह अश्रु जो गिरने चला है ,
राम से सीता अलग हैं ,कृष्ण से राधा अलग हैं ,
नियति का हर न्याय सच्चा , हर कलेवर में कला है ,


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