Thursday, December 25, 2014

 प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये
ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाये
लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाये
भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाये



 कट गई झगड़े में सारी रात वस्ल-ए-यार की
शाम को बोसा लिया था, सुबह तक तक़रार की
ज़िन्दगी मुमकिन नहीं अब आशिक़-ए-बीमार की
छिद गई हैं बरछियाँ दिल में निगाह-ए-यार की




मैं तो इक अश्के- नदामत के सिवा कुछ भी नहीं
तुम अगर चाहो तो पलकों पे बिठा लो मुझको



 तुझे कोई और भी चाहे,इस बात से दिल थोडा जलता है...!! पर फखर है मुझे इस बात पे कि, हर कोई मेरी पसंद पे ही मरता है...!!



: जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
लतीफ़ था वो तख़य्युल से, ख़्वाब से नाज़ुक
गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में



 ज़िन्दगी मिलती हे हिमत वालो को,
ख़ुशी मिलती हे तकदीर वालो को,
प्यार मिलता हे दिल वालो को,
और आप जेसा दोस्त मिलता हे नसीब वालो को


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