Sunday, December 21, 2014

तुम्हारी शिकायत बजा है
मगर तुमसे पहले भी
दुनिया यही थी
यही आज भी है
यहीं कल भी होगी....!

तुम्हें भी
इसी ईंट-पत्थर की दुनिया में
पल-पल बिखरना है
संवरना है
जीना है
मरना है ।

फ़क़त एक तुम ही नहीं हो
यहाँ
जो भी अपनी तरह सोचता
ज़माने की बेरंगियों से ख़फ़ा है
हर एक ज़िंदगी
इक नया तज़ुर्बा है ....!

मगर......जब तलक़ ....
ये शिकायत है ज़िंदा....
ये समझो ....
ज़मीं पर ....
..... मुहब्बत, है ज़िंदा....!!

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